पहले हम हुये या हमारी कल्पना । यदि हम स्वयं न होते तो क्या हमारे विचार होते । आख़िर विचारों का श्रोत भला क्या हो सकता है। लोग कहतें हैं की शब्द नही मरते हैं , वे हमेशा ब्रम्हांड में जीवित रहतें हैं । जो भी हम बोलतें हैं, वे कभी नही मरते। मई भी यही मानता हूँ की शब्द कभी नही मरते। उसको कभी भी आकाश से निकाला जा सकता है। लेकिन मेरी आध्यात्मिक अनुभूति है कि यदि शब्द नही मरते तो शब्द को गढ़ने वाला भला कैसे मर सकता है। उस विचारों का श्रोत जो आत्मा है, कैसे marega , उस आत्मा का अंत तो कभी सम्भव है ही नही ...................... इसलिए आत्मा अनंत हुआ ।
योगी अनूप
सोमवार, 25 मई 2009
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