बुधवार, 3 जून 2009

my diary 3-3-1998

जब भी हमे कभी इस बात का ज्ञान हो जायकि अमुक नाम की परम्परा वर्तमान समाज के हित में नही तो हमें उसको बदलने का प्रयास अवस्य करना चाहिए । बुद्धि का सम्पूर्ण कर्तव्य है की अपने से जुड़े समस्त अंगों का निरीछन करे और उसे एक ऐसी गति प्रदान करे जो स्थिर एवं पारंपरिक हो क्योंकि यदि ऐसा न हुआ तो समाज में संगठन की छमता का छीन होना प्रारम्भ हो जाएगा। अंततः यही होगा की अज्ञानता ही राज्य करेगी । जाती , वर्ग तथा राज्य में विभाजन एक आम बात हो जायेगी ।
हम कुछ ऐसा करें कि इसमे परिवर्तन हो सके ।
वह सबसे बड़ी कमजोरी क्या है जो इस महान रास्ट्र को दीमक कि भांति चाटे जा रही है । मुझे तीन बातों की कमी प्रमुख रूप से दिखाई देती है; अज्ञानता , लक्ष्यविहीनता , और आलस्य की कमी। इन तीनो में कौन पहले और कौन बाद में है , यह कहना मुश्किल है पर अज्ञानता को ही हमें प्रमुखता पर रखना होगा। क्योंकि ज्ञान के आने पर दिशा का निर्धारण स्वतः हो जाता है । दिशा के निर्धारण होने पर जीवन में एक गति आ जाती है । हम सभी भासनबाजी करने में माहिर हैं कर्म में नही । जो कर्म में माहिर हैं उन देशों को देखो, वे कंहा पर हैं ।