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लोग टॉयलेट में सिगरेट, पेपर पढ़ते हैं , गुन्गुनातें हैं पर मुझे उस समय चिंतन करना अच्छा लगता है । विचारोंके साथ खेलने में, उनको पकड़ने में , तथा uनको मारने में आनंद आता है । ये सब करने में भूल ही जाता हूँ की मै यंहा आया किस लिए था । कभी कभी तो टॉयलेट में घंटों बिता देता हूँ और मुझे समय का पता ही नही चलता।
पेशाब करने में सामान्य लोग लगभग एक से दो मिनट लगाते हैं लेकिन मैं तो लगभग पाँच से दस मिनट लगाता हूँ । मेरे मित्र तो कहतें हैं कि इसने तो रावन को भी मात दे दिया। वैसे रावन पेशाब करने में सबसे अधिक समय लगाता था ।
योग के अनुसार तो ऐसा करने वाले की किडनी बहुत मजबूत होती है या फ़िर बहुत कमजोर होती है। मेरी क्या है ये मुझे मालूम नही।
घर में पिता जी माँ से चिल्लाते हुए कहते थे - लगता है की पूर्व जन्म में, यह टॉयलेट में ही पैदा हुआ था क्या ? सूरज निकल आया है ... अरे दितोक्सिफिकेशन की हद होती .... यह कहते हुए ऑफिस की ओर निकल जाते थे ।
इसके बाद मेरी मां की बारी आती थी- अरे बर्थडे करके निकलोगे क्या ? चिंता न कर तेरी शादी भी मै उसी में करवा के मानूंगी । वन्ही अपनी बीबी के साथ सब कुछ करना .....बडबडाते हुए टॉयलेट के दरवाजे की ओर दौड़ती थी।
डर के मारा मै किसी तरह आधा काम बींच में ही छोड़ कर आता था ।
और अब शादी के बाद बीबी मेरे चिंतन से परेशान है .....वो तो कहती है , क्या वन्ही पर शीर्शाशन लगा लिया क्या।
मेरे यह कहने पर कि मै चिंतन कर रहा हूँ .....
"जितने भी पागल और सनकी हुए हैं वे टॉयलेट में ही चिंतन करतें हैं । "
सत्य तो यह है की मै हर एक पल का उपयोग करता हूँ । मेरा अनुभव है जब प्रयोग नही होगा तो कोई खोज नही होसकती। प्रयोग के लिए न कोई स्थान और न कोई समय होता है ।
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